SAIL मॉडर्नाइजेशन: सुनहरे सपने या महंगे धोखे की वापसी?

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SAIL 👉 110,000 करोड़ का विस्फोटक सवाल – आखिर क्यों इतना महंगा पड़ रहा है ‘मॉडर्नाइजेशन’?
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प्राइवेट कंपनियाँ आधे दाम में कर रही कमाल!
💰 14 मिलियन टन बढ़ोतरी, 1.10 लाख करोड़ रुपये की कीमत!
स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड (SAIL) एक बार फिर बड़े पैमाने पर मॉडर्नाइजेशन और विस्तार योजना लेकर आगे बढ़ रहा है। लक्ष्य है – 2030 तक उत्पादन क्षमता को 50 मिलियन टन तक पहुँचना। सुनने में यह देश की औद्योगिक प्रगति की शानदार तस्वीर लगती है। लेकिन जब हम आंकड़ों और पुरानी योजनाओं पर नज़र डालते हैं, तो कहानी कुछ और ही बयान करती है।
अब जरा तुलना कीजिए – टाटा स्टील और JSW जैसे प्राइवेट दिग्गज जहाँ नई ज़मीन पर नए प्लांट खड़े कर रहे हैं, जिनमें बिजली, पानी, रेललाइन, इंफ्रास्ट्रक्चर सबकुछ नया बनाना होता है, उनकी लागत आती है लगभग ₹4,500 से 5,000 करोड़ रुपये प्रति मिलियन टन।
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इस हिसाब से SAIL का खर्च 70,000 करोड़ रुपये से ज्यादा नहीं होना चाहिए था। फिर भी लागत का आंकड़ा 1.10 लाख करोड़ रुपये क्यों है? आखिर 40,000 करोड़ रुपये अतिरिक्त कहाँ से जुड़ गए – यह बड़ा सवाल है।
⏳ पुराना अनुभव – देरी, खर्च और अधूरी मशीनें
यह पहली बार नहीं है जब SAIL इतना बड़ा विस्तार कर रहा है। 2007 में भी 12 मिलियन टन से 26 मिलियन टन (14 Mt) तक बढ़ाने का लक्ष्य रखा गया था।
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अनुमानित लागत: ₹54,000 करोड़
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असली लागत: ₹81,000 करोड़ (यानी 50% ज्यादा)
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लक्ष्य: 26 मिलियन टन
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नतीजा: सिर्फ 21 मिलियन टन
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तय समय: 2012
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हकीकत: 2019 में जाकर पूरा हुआ – और तब भी कई मशीनें आज तक पूरी तरह commissioned नहीं हो पाईं।
❓ बोकारो का मामला – पैसा खर्च, उत्पादन जस का तस
2007 की योजना में बोकारो स्टील प्लांट की क्षमता को 4 मिलियन टन से 7 मिलियन टन करने का लक्ष्य था। भारी भरकम निवेश के बावजूद, बोकारो की उत्पादन क्षमता में वांछित बढ़ोतरी नहीं हो पाई।
यह स्थिति अपने आप में जाँच का विषय है कि आखिर इतने बड़े खर्च के बाद भी उत्पादन क्षमता क्यों नहीं बढ़ी।
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🚨 जनता को क्या समझना चाहिए?
- जब किसी सरकारी कंपनी का खर्च योजना से 30-40 हजार करोड़ रुपये ज्यादा हो जाता है, तो इसका सीधा असर देश की आर्थिक नीतियों और करदाताओं की जेब पर पड़ता है।
- प्राइवेट कंपनियाँ कम लागत में ज्यादा उत्पादन कर रही हैं, जबकि SAIL अधिक लागत, कम उत्पादन और देरी की आदत से बाहर नहीं निकल पा रहा।
- यदि यही सिलसिला जारी रहा, तो नए मॉडर्नाइजेशन के नाम पर भी करोड़ों-करोड़ रुपये अतिरिक्त खर्च हो जाएंगे, और देश को उत्पादन का पूरा लाभ समय पर नहीं मिलेगा।
📌 निष्कर्ष – विस्तार ज़रूरी है, लेकिन पारदर्शिता कहाँ है?
SAIL का नया मॉडर्नाइजेशन देश की ज़रूरत है – इसमें कोई शक नहीं। लेकिन सवाल यह है कि-
- क्या यह विस्तार ईमानदारी से होगा या फिर पिछले जैसे खर्चीले और अधूरे सपनों की कहानी बनेगा?
- क्या यह विस्तार आर्थिक रूप से न्यायसंगत और पारदर्शी है?
2007 की तरह अगर लागत बढ़ी, समय पीछे गया और उत्पादन घटा, तो 2030 का सपना एक बार फिर केवल कागज़ों में सिमट कर रह जाएगा।
अब वक्त आ गया है कि सरकार और प्रबंधन खुलकर बताएं – आखिर SAIL का मॉडर्नाइजेशन देश को कितने में और कब तक पड़ेगा?
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🔴 बड़ा सवाल:
क्या SAIL का 1.10 लाख करोड़ का मॉडर्नाइजेशन देश को मजबूत करेगा, या फिर कर्मचारियों/जनता की जेब पर एक और भारी बोझ बनेगा?
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✍🏻रिपोर्ट : डिजिटल भिलाई न्यूज़
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