22 सितंबर से लागू होंगे नए GST रेट्स। कार डीलर्स, दुकानदार और बीमा कंपनियां क्यों हैं परेशान? और ग्राहकों पर क्या होगा असर? पढ़िए पूरी रिपोर्ट।

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– 15 – SEPTEMBER – 2025 – GST 2.0
बदलते GST रेट्स से क्यों मचा है हड़कंप?
22 सितंबर 2025 से देश में नए जीएसटी रेट लागू होने वाले हैं। सरकार ने कई प्रोडक्ट्स पर टैक्स घटा दिया है। कुछ सामान पर जीएसटी शून्य हो जाएगा, तो कुछ पर 18% से घटाकर 5% तक कर दिया गया है।
इस खबर के आते ही अलग-अलग सेक्टर्स — कार डीलर्स, एफएमसीजी (FMCG) कंपनियां, छोटे दुकानदार और बीमा कंपनियां — सभी अपनी-अपनी दिक्कतें गिनाने लगे। ग्राहकों के लिए यह राहत की बात जरूर है, लेकिन इंडस्ट्री के लिए यह एक बड़ा “ट्रांज़िशन झटका” है।
ऑटो सेक्टर: बंपर डिस्काउंट का सच
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कार डीलरशिप्स पर इस वक्त 6–7 लाख गाड़ियों का स्टॉक पड़ा हुआ है।
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पिछले साल बिक्री धीमी रही, जिससे कंपनियों का माल अटका रह गया।
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अब जब जीएसटी घटेगा, तो पुरानी गाड़ियों को उसी पुराने टैक्स रेट पर बेचने से नुकसान होगा।
👉 इसलिए कंपनियां स्टॉक खत्म करने के लिए लाखों रुपये तक का डिस्काउंट दे रही हैं।
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Mahindra ने 6 सितंबर से ही नई दर का फायदा ग्राहकों को देना शुरू कर दिया।
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Kia ने अपने कुछ मॉडल्स पर ₹1.7 लाख तक की छूट की घोषणा की है।
सरल शब्दों में: कार कंपनियां घाटे से बचने के लिए अभी गाड़ियां बेचकर नकदी वापस ला रही हैं। यही वजह है कि ग्राहकों के लिए अभी खरीदारी का बेहतरीन मौका है।
FMCG और छोटे दुकानदार: MRP बदलने का झंझट
👉FMCG सेक्टर यानी पैक्ड फूड, डेयरी और ग्रॉसरी प्रोडक्ट्स पर भी टैक्स कम हुआ है।
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दुकानदारों और कंपनियों के पास जो पुराना स्टॉक पड़ा है, उसकी पैकिंग पर पुराना टैक्स और पुरानी MRP छपी हुई है।
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22 सितंबर के बाद यही स्टॉक सस्ते रेट पर बिकना चाहिए, लेकिन पैकेट पर तो पुरानी कीमत लिखी है।
👉सरकार का अस्थायी हल:
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31 दिसंबर 2025 तक पुरानी पैकिंग पर नई MRP स्टिकर या री-प्रिंट करके लगाया जा सकता है।
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शर्तें:
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पुरानी कीमत साफ दिखनी चाहिए।
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नया दाम सिर्फ टैक्स घटने या बढ़ने के कारण ही बदला जाए।
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इसकी जानकारी कंपनियों को अखबारों में एड और नोटिस के जरिए देनी होगी।
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👉सरल भाषा में: सरकार ने कहा है — “पुराना माल बर्बाद मत करो। बस सही तरीके से नई कीमत बताकर बेच दो।”
बीमा कंपनियों की उलझन: जीरो टैक्स लेकिन बढ़ा खर्च
👉जीवन और स्वास्थ्य बीमा पॉलिसियों पर GST अब 0% कर दिया गया है।
👉सुनने में यह ग्राहकों के लिए राहत जैसा लगता है, लेकिन बीमा कंपनियों की दिक्कत और बढ़ गई है।
क्यों?
👉कंपनियां अपने एजेंट्स को कमीशन देती हैं, ऑफिस का किराया चुकाती हैं और अलग-अलग ऑपरेशन खर्च करती हैं। इन सब पर उन्हें अभी भी 18% जीएसटी देना पड़ रहा है।
लेकिन अब इन खर्चों का Input Tax Credit (ITC) नहीं मिल पा रहा।
Input Tax Credit (ITC) — बेस से समझें
👉Input Tax Credit का मतलब है कि कोई कंपनी जब बिज़नेस के लिए सामान या सेवा खरीदती है और उस पर जीएसटी देती है, तो वह बाद में अपने ग्राहक से वसूले गए जीएसटी से उस टैक्स को घटा सकती है।
👉आसान उदाहरण:
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एक बीमा कंपनी अपने ऑफिस का किराया देती है और उस पर ₹18,000 जीएसटी चुका देती है।
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बाद में जब वही कंपनी ग्राहकों से प्रीमियम पर टैक्स वसूलती है, तो वह कह सकती है — “मैंने पहले ही किराए पर जीएसटी दे दिया है, तो उतना हिस्सा मेरी टैक्स लायबिलिटी से घटा दो।”
👉शॉर्ट हिस्ट्री:
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जीएसटी से पहले भी VAT, एक्साइज और सर्विस टैक्स में ऐसा प्रावधान था, लेकिन वह उलझा हुआ और अलग-अलग राज्यों में भिन्न था।
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2017 में जीएसटी लाने का सबसे बड़ा फायदा यही बताया गया था कि अब टैक्स की चेन में बार-बार टैक्स नहीं लगेगा और ITC से राहत मिलेगी।
👉समस्या अब:
👉क्योंकि अब बीमा प्रीमियम पर टैक्स 0% हो गया है, कंपनियों को ग्राहकों से जीएसटी लेने का मौका ही नहीं है।
तो जो उन्होंने खर्चों पर टैक्स दिया है, उसका क्रेडिट एडजस्ट नहीं कर पा रहे।
मतलब उनका खर्चा बढ़ेगा और हो सकता है कि आगे चलकर बीमा प्रीमियम फिर महंगे हो जाएं।
Compensation Cess: कार कंपनियों का फंसा हुआ पैसा
👉Compensation Cess एक अस्थायी टैक्स था, जो जीएसटी लागू करते समय 2017 में शुरू किया गया।
👉क्यों लाया गया था?
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जब जीएसटी आया तो राज्यों को डर था कि उनकी कमाई घट जाएगी।
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सरकार ने वादा किया कि 5 साल तक राज्यों की भरपाई की जाएगी।
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इसके लिए “लक्ज़री और सिन गुड्स” (जैसे बड़ी गाड़ियां, तंबाकू, कोयला) पर अतिरिक्त टैक्स लगाया गया — इसे कहा गया Compensation Cess
👉अब समस्या क्या है?
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अब GST 2.0 में Compensation Cess हटा दिया गया है।
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लेकिन ऑटो सेक्टर ने पहले से ही इस टैक्स में हजारों करोड़ रुपये जमा कर दिए थे।
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सिर्फ कार इंडस्ट्री का ही अनुमान है कि ₹2000–2500 करोड़ का क्रेडिट लाप्स हो जाएगा।
👉सरल भाषा में: यह टैक्स वैसे था जैसे किसी इवेंट का टिकट। इवेंट खत्म, तो टिकट की वैल्यू भी खत्म।
कंपनियां कह रही हैं — “हमने टिकट लिया, शो पूरा नहीं हुआ, तो पैसा लौटाओ।”
लेकिन सरकार कह रही है — “व्यवस्था खत्म हो चुकी है, अब क्रेडिट वापस नहीं मिलेगा।”
ग्राहकों पर असर: फायदे और खतरे?
👉फायदे:
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नई कारें सस्ते दाम पर मिल रही हैं।
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दूध, पनीर, बिस्किट, चॉकलेट जैसे रोज़मर्रा के सामान पर टैक्स घटने से दाम कम होंगे।
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बीमा पॉलिसी पर टैक्स जीरो होने से ग्राहकों को तुरंत फायदा दिखेगा।
👉खतरे:
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पुराने स्टॉक और नई MRP को लेकर ग्राहकों में कन्फ्यूज़न हो सकता है।
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बीमा कंपनियां अगर खर्चा नहीं संभाल पाईं तो प्रीमियम दरें आगे फिर बढ़ सकती हैं।
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कार कंपनियों का सेस घाटा इंडस्ट्री को कमजोर कर सकता है।
राहत और परेशानी दोनों
👉22 सितंबर से GST का नया दौर ग्राहकों के लिए राहत और छूट का तोहफा लाएगा।
लेकिन कंपनियों और दुकानदारों के लिए यह बदलाव कई नई उलझनें भी खड़ा कर रहा है।
सरकार ने पुराने स्टॉक की बिक्री, नई MRP और डेटा मॉनिटरिंग को लेकर गाइडलाइन दे दी है। अब देखना यह होगा कि इंडस्ट्री इन नियमों का कितना ईमानदारी से पालन करती है और राहत का फायदा ग्राहकों तक कितना पहुंचता है।
👉 ग्राहकों के लिए सलाह:
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अगर बड़ी खरीदारी (जैसे कार) करनी है, तो यह सही समय हो सकता है।
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खरीदारी करते वक्त बिल और टैक्स का पूरा हिसाब चेक करें।
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FMCG प्रोडक्ट्स पर नई MRP देखकर ही खरीदें।
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रिपोर्ट : DIGITAL BHILAI NEWS