27,000 Contract Workers का हक़ दबा रहे ठेकेदार: BSP में हर माह 8 करोड़ का खेल!

– DIGITAL BHILAI NEWS –
1 सितम्बर 2025 – SAIL/BHILAI STEEL PLANT
- BHILAI STEEL PLANT एक ओर देश की स्टील इंडस्ट्री की रीढ़ माना जाता है, वहीं दूसरी ओर यहां काम करने वाले ठेका श्रमिकों (contract workers) की हालत बेहद चिंताजनक है।
- ताज़ा खुलासे के अनुसार, SAIL की ओर से ठेका श्रमिकों (contract workers) को मिलने वाली एडिशनल वेलफेयर एमिनिटीज़ (AWA) की राशि का बड़ा हिस्सा ठेकेदार हड़प रहे हैं।
- करीब 27,000 ठेका श्रमिकों का यह पैसा हर माह ₹8 करोड़ से ज्यादा होता है, लेकिन मज़दूरों के खातों तक नहीं पहुंचता।
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क्या है एडिशनल वेलफेयर एमिनिटीज़ (AWA)?
BSP में काम करने वाले ठेका श्रमिकों (contract workers) को वेतन के अतिरिक्त हर माह ₹3700 रुपये AWA के नाम पर दिए जाने का प्रावधान है।
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यह राशि SAIL से जारी की जाती है।
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इसका मकसद ठेका श्रमिकों के कल्याण और अतिरिक्त सुविधाओं की पूर्ति करना है।
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लेकिन यह रकम ठेकेदारों के पास जाकर रुक जाती है।
इस तरह contract workers का सालाना हक़ करीब ₹44,400 रुपये प्रति व्यक्ति बनता है, जो उनकी ज़िंदगी सुधार सकता है। लेकिन यह रकम उनके हाथों तक पहुंच ही नहीं पाती।
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हर माह 8 करोड़, सालाना 120 करोड़ का खेल
आंकड़े चौंकाने वाले हैं—
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27,000 श्रमिक (Contract workers) × ₹3700 = ₹9.99 करोड़ प्रतिमाह (कुल राशि)
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अनुमानित 80% राशि श्रमिकों तक नहीं पहुंचती।
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यानी करीब ₹8 करोड़ हर माह ठेकेदारों के पास रह जाता है।
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सालाना नुकसान लगभग ₹120 करोड़ का है। (जब मान लें कि AWA का कुछ भी नहीं दिया जा रहा।)
❗इतनी बड़ी रकम एक पैरेलल ब्लैक इनकम के रूप में ठेकेदारों की जेब में जा रही है।
⚠️एक श्रमिक से बातचीत में पता चला की AWA के 3700 रुपये उसके मासिक वेतन स्लिप में दर्शाया जाता है, लेकिन श्रमिक का दावा है कि उसके हाथ में सिर्फ 1040 रुपये ही मिलते हैं। यानी दो-तिहाई से ज्यादा राशि बीच में ही कट जाती है।
इस जानकारी के अनुसार: हाथ में ~₹1,040 मिलता है
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प्रति श्रमिक शॉर्टफॉल = ₹3,700 − ₹1,040 = ₹2,660/माह
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मासिक शॉर्टफॉल (कुल) = 27,000 × ₹2,660 = ₹7,18,20,000 ≈ ₹7.182 करोड़/माह
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सालाना शॉर्टफॉल (कुल) = ₹7.182 करोड़ × 12 = ₹86.184 करोड़/वर्ष ≈ ₹86.2 करोड़
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यानी ग्राउंड इनपुट के हिसाब से वास्तविक अनुमानित नुकसान ~₹86.2 करोड़/वर्ष बनता है।
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मजदूरों की मजबूरी और ठेकेदारों की मनमानी
समाचार के मुताबिक, जब श्रमिक AWA की राशि मांगते हैं तो ठेकेदार धमकी और दबाव का रास्ता अपनाते हैं।
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“पैसा मांगोगे तो काम से निकाल देंगे“
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“कंपनी में ब्लैकलिस्ट कर देंगे”
ऐसी धमकियों से मज़दूर चुपचाप काम करते रहते हैं। चूंकि उनका रोजगार अस्थायी है और भविष्य अनिश्चित, वे अपने हक की आवाज़ उठाने से डरते हैं।
यहाँ तक की जो मंथली wage/payment का पैसा श्रमिकों के अकाउंट में डालने का प्रावधान है, उसे भी ठेकेदार contract worker के account में डालने के बाद, उससे कुछ हिस्सा बाद में cash के रूप में निकलवा वापिस ले लेते हैं।
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कहां चूक रही है SAIL – BSP?
SAIL – BSP यह (AWA) राशि नियमित रूप से जारी करते हैं। लेकिन—
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इस राशि (AWA) का सही मॉनिटरिंग सिस्टम नहीं है।
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AWA राशि न ही यह सीधे मज़दूरों के खाते में जाती है।
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बीच में ठेकेदारों को दिए जाने से भ्रष्टाचार की गुंजाइश बनती है।
अगर यह पैसा Direct Bank Transfer (DBT) के ज़रिए सीधे मज़दूरों के खाते में पहुंचे, तो समस्या कुछ हद तक कम हो सकती है, वो भी तब जब ठेकेदार CASH के रूप में यह पैसा भी उनसे निकलवा कर हड़प न ले।
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श्रमिकों (Contract Workers) पर असर?
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आर्थिक नुकसान – हर मज़दूर सालाना ₹44,400 से वंचित।
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मनोबल पर चोट – मेहनत करने के बावजूद हक न मिलना।
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स्थायी श्रमिकों से असमानता – पहले से ही वेतन का बड़ा अंतर है।
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भविष्य की अनिश्चितता – नौकरी जाने के डर से आवाज़ उठाने में हिचक।
जमीनी हकीकत:
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फैक्ट्री के भीतर श्रमिक खतरनाक परिस्थितियों में दिन-रात काम कर रहे हैं।
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आग, धुआं और स्टील फर्नेस के बीच काम करने के बावजूद उन्हें न्यूनतम वेतन अधिनियम (Minimum Wages Act) के अनुरूप वेतन नहीं मिलता।
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श्रमिकों को अक्सर समय पर वेतन और ओवरटाइम पेमेंट के लिए भी संघर्ष करना पड़ता है।
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औद्योगिक और सामाजिक असर
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लंबे समय तक यह स्थिति बनी रही तो BSP में औद्योगिक असंतोष पनप सकता है।
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श्रमिक संगठनों पर दबाव बढ़ेगा कि वे इस मुद्दे को उठाएं।
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SAIL जैसी राष्ट्रीय कंपनी की साख पर सवाल उठेंगे।
समाधान की ज़रूरत
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Direct Benefit Transfer (DBT): AWA की राशि सीधे मजदूरों के बैंक खातों में डाली जाए।
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पारदर्शिता: ठेका श्रमिकों के लिए अलग पोर्टल या ऐप, जिसमें हर माह का भुगतान दिखे।
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निगरानी समिति: श्रमिक संगठनों और स्वतंत्र एजेंसियों की संयुक्त मॉनिटरिंग।
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कानूनी हस्तक्षेप: श्रम विभाग और न्यायालयों से दखल।
निष्कर्ष
BHILAI STEEL PLANT की ताकत सिर्फ मशीनें और टेक्नोलॉजी नहीं, बल्कि यहां काम करने वाले हज़ारों श्रमिक हैं। अगर उनकी मेहनत का हक़ ठेकेदारों की जेब में ही जाता रहेगा, तो यह न केवल श्रमिकों के शोषण का मामला है, बल्कि एक बड़े आर्थिक घोटाले जैसा है।
BSP और SAIL प्रबंधन को चाहिए कि तुरंत पारदर्शी व्यवस्था बनाएं, जिससे 27,000 ठेका श्रमिकों (Contract workers) को उनका हक़ मिले।
रिपोर्ट : DIGITAL BHILAI NEWS
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